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1-2 यूसुफ ने अपने साथ राजा के पास जा कर बात करने के लिए अपने पाँच भाइयों को चुना। उसने उन्हें राजा के सामने पेश किया और कहा, "मेरे पिता और मेरे सब भाई कनान देश से आए हैं। ये अपनी सभी भेड़ें, बकरियाँ, जानवर और इनका जो कुछ था अपने साथ लाए हैं अन्य सभी चीजे भी लाये है। इस समय वे गोशेन प्रदेश में रह रहे हैं।" 3 राजा ने यूसुफ के भाइयों से पूछा, " तुम क्या काम करते हो?" उन्होंने राजा से कहा, "हम अपने पूर्वजों के समान चरवाहे हैं।" 4 उन्होंने उससे यह भी कहा, "हम कुछ ही समय के लिए यहाँ रहने आए हैं क्योंकि कनान में भयंकर अकाल पड़ा है। इस कारण हमारे पशुओं के लिए वहाँ चारा नहीं रहा। तो अब, कृपया हमें इस गोशेन क्षेत्र में रहने दे।"

5 राजा ने यूसुफ से कहा, " तेरे पिता और भाई तेरे पास आए हैं। 6 वे मिस्र में जहाँ चाहें रह सकते हैं। अपने पिता और अपने भाइयों को भूमि का सबसे अच्छा भाग दे। वे गोशेन में रह सकते हैं। और यदि उनमें कोई पशुपालन में विशेष योग्यता रखता है तो वह मेरे भी पशुओं की देख-भाल कर सकता है।"

7 तब यूसुफ अपने पिता याकूब को महल में लाया और उसे राजा के सामने पेश किया। याकूब ने परमेश्वर से राजा को आशीर्वाद देने के लिए कहा। 8 तब राजा ने याकूब से पूछा, "तेरी उम्र कितनी है?" 9 याकूब ने उत्तर दिया, "मैं 130 वर्ष से यहाँ वहाँ की यात्रा कर रहा हूँ। मैंने अपने पूर्वजों के समान लम्बे समय तक जीवन नहीं जिया, और मेरा जीवन परेशानियों से भरा रहा है।" 10 तब याकूब ने फिर से परमेश्वर से राजा को आशीर्वाद देने के लिए कहा और वहाँ से चला गया।

11 इस प्रकार यूसुफ ने अपने पिता और भाइयों को मिस्र में निवास करने के लिए सक्षम बनाया। जैसा कि राजा ने आज्ञा दी थी, उसने उन्हें गोशेन में भूमि के सबसे अच्छे भाग में संपत्ति दी, जिसे अब रामसेस नगर कहा जाता है। 12 यूसुफ ने अपने पिता के परिवार के लिए भोजन भी उपलब्ध कराया। उसने उनकी संतानों की संख्या के अनुसार भोजन सामग्री देकर उनके पालन पोषण का प्रबन्ध किया।

13 भयंकर अकाल के कारण पूरे देश में अन्न नहीं उपजाया जा रहा था। मिस्र और कनान के लोग कमजोर हो गए क्योंकि उनके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं था। 14 यूसुफ के पास मिस्र और कनान के लोगों का सारा पैसा आ गया था जो अन्न की बिक्री का पैसा था। उसने वह सब पैसा राजा के महल में पहुँचा दिया। 15 जब मिस्र और कनान के लोगों का पैसा समाप्त हो गया तब वे यूसुफ के पास आ कर कहने लगे, "हमें भोजन दे क्योंकि अन्न के बिना हम मर जाएँगे। हमने अपना सारा पैसा अन्न खरीदने में लगा दिया है। अब हमारे पास कोई पैसा नहीं बचा है!" 16 यूसुफ ने उत्तर दिया, "तुम्हारे पास पैसा नहीं है तो मुझे अपने पशु दे दो। यदि ऐसा करोगे तभी मैं तुम्हारे पशुओं के बदले में तुम्हें अन्न बेचूँगा।" 17 इसलिए वे अपने पशुओं को यूसुफ के पास ले आए। यूसुफ ने उनके घोड़े, भेड़ बकरियाँ, गाय, बैल और गदहे के बदले उन्हें अन्न दिया।

18 जब वह वर्ष समाप्त हो गया, तो वे अगले वर्ष उसके पास आए और कहा, "हम तुमसे यह छिपा नहीं सकते: हमारे पास और पैसा नहीं है और अब हमारे सारे पशु तेरे पास हैं। अब तुझे देने के लिए हमारे पास केवल हमारे शरीर और भूमि है। हमारे पास कुछ और नहीं बचा है। 19 यदि तू हमें अन्न नहीं देगा तो हम भूख के कारण मर जाएँगे। यदि तू हमें बीज नहीं देगा तो हमारी भूमि किस काम की। हमें और हमारी भूमि लेकर बदले में हमें अन्न दे। इस प्रकार हम राजा के दास बन जाएँगे और हमारी भूमि का स्वामी वही होगा। हमें बीज भी दे कि हम पौधे लगाएं भोजन उगाएं कि मर न जाएँ और हमारी भूमि मरुभूमि न बने।"

20 तब यूसुफ ने राजा के लिए मिस्र में सभी खेतों को खरीद लिया। भयंकर अकाल के कारण मिस्र के लोगों ने अपनी भूमि बेच दी। उनके पास भोजन खरीदने का कोई और उपाय नहीं था। अतः सभी खेत राजा के हो गए। 21 इसके परिणाम स्वरुप यूसुफ ने देश की एक सीमा से दूसरी सीमा तक के लोगों को राजा का दास बना दिया। 22 लेकिन उसने याजकों की भूमि नहीं खरीदी, क्योंकि उनके लिए राजा की ओर से नियमित रूप से भोजन सामग्री पहुँचाई जाती थी। यही कारण था की उन्होंने अपने खेत नहीं बेचे थे।

23 यूसुफ ने लोगों से कहा, "आज मैंने तुम्हें और तुम्हारे खेतों को राजा के लिए खरीद लिया है। इसलिए खेती करने के लिए तुम्हें बीज दिया जा रहा है। 24 लेकिन जब तुम फसल काटोगे तुम्हें उसका पाँचवां भाग राजा को देना होगा। शेष फसल तुम्हारे लिए बीज बोने और तुम्हारे परिवार के बच्चों और प्रत्येक के लिए भोजन होगा।" 25 उन्होंने उत्तर दिया, " तू ने हमारी जान बचाई है। हम तुझे प्रसन्न करना चाहते हैं। हम राजा के दास होंगे।"

26 तब यूसुफ ने मिस्र की सारी भूमि के लिए एक कानून बना दिया, जिसमें कहा गया था कि फसलों का पाँचवां भाग राजा का होगा। वह कानून आज तक स्थिर है। केवल याजकों की भूमि राजा की भूमि नहीं बनी।

27 याकूब और उसका परिवार मिस्र के गोशेन प्रदेश में रहने लगा। वहाँ की भूमि उन्हें मिल गई। वहीं उनकी संताने भी उत्पन्न हुईं और परिणामत: उनकी आबादी बहुत अधिक बढ़ गयी।

28 याकूब 17 वर्ष मिस्र में रहा। कुल मिलाकर वह 147 वर्ष तक जीवित रहा। 29 जब याकूब का अंतिम समय आ गया तब उसने यूसुफ को बुलाया और उससे कहा, "यदि तू मुझसे प्रसन्न है तो मेरी जांघों के बीच अपना हाथ रखकर सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करो कि तू अपने पिता अर्थात मेरे प्रति विश्वासयोग्य रहेगा और जो मैं अब भरोसा करके कह रहा हूँ, वह करेगा: तू मेरे मरने के बाद मुझे मिस्र में दफन मत करना। 30 इसकी अपेक्षा, जब मैं मर कर अपने पूर्वजों में शामिल हो जाऊँ जो पहले मर गए हैं, तब तू मेरे शव को कनान देश ले जाना जहाँ उनकी कब्र है।" यूसुफ ने उत्तर दिया , "मैं वहीं करूँगा जो तू ने कहा है।" 31 याकूब ने कहा, "वचन दे कि तू ऐसा ही करेगा!" तब यूसुफ ने ऐसा करने की शपथ खाई। याकूब अपने बिस्तर पर सिरहाने की ओर झुका और परमेश्वर की आराधना की।