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1 कुछ समय बाद, परमेश्वर ने याकूब से कहा, "यहाँ से बेतेल नगर को जा, वहाँ बस जा और वहाँ आराधना के लिए वेदी बना। मैं वही परमेश्वर हूँ जिसने तुझे उस समय दर्शन दिया था जब तू अपने भाई एसाव से भाग रहा था।" 2 तब याकूब ने अपने परिवार और साथ के सब लोगों से कहा, "अपने पास से मीसोपोतामिया के सब देवी-देवताओं की मूर्तियों को निकाल दो, स्नान करो और साफ कपड़े पहनो। 3 तब हम सब तैयार होकर बेतेल को जाएँगे। वहाँ मैं परमेश्वर की आराधना करने के लिए एक वेदी बनाऊँगा क्योंकि जब मैं बड़े संकट में था और मुझ पर भय छाया हुआ था तब उन्होंने मेरी सहायता की थी और मैं जहाँ भी गया वहाँ वह मेरे साथ रहे।" 4 अतः उन्होंने अपनी मूर्तियाँ और कान के कुंडल याकूब को दे दिए और याकूब ने उन्हें शकेम नगर के निकट एक बांज वृक्ष के नीचे गाड़ दिया।

5 जब वे वहाँ जाने के लिए तैयार थे, तो परमेश्वर ने वहाँ के सब निवासियों के मन में याकूब के परिवार का भय भर दिया जिससे कि उन्होंने उनका पीछा नहीं किया। 6 इसलिए याकूब और उसके लोग लूज पहुँचे। अब लूज को बेतेल कहते हैं। यह कनान प्रदेश में है। 7 वहाँ उसने यहोवा के लिए एक वेदी बनाई और उसका नाम एलबेतेल रखा अर्थात "बेतेल का परमेश्वर" क्योंकि जब याकूब अपने भाई एसाव से डर कर भाग रहा था तब परमेश्वर का दर्शन उसे वहीं हुआ था।

8 वहाँ इसहाक की पत्नी रिबका को दूध पिलाने वाली धाय, दबोरा, जो अब बहुत वृद्ध थी, उसका देहान्त हो गया और उसे बेतेल के दक्षिण में एक बांज वृक्ष के नीचे दफन कर दिया गया। इसलिए उस स्थान का नाम अल्लोनबक्कूत रखा गया जिसका अर्थ है, "शोक का बांज वृक्ष।"

9 जब याकूब पद्दनराम से लौटा तब परमेश्वर उसके सामने फिर से प्रकट हुए। परमेश्वर ने याकूब को आशीर्वाद दिया। 10 परमेश्वर ने उससे फिर कहा, " तेरा नाम अब याकूब नहीं इस्राएल होगा।" तब से याकूब "इस्राएल" कहलाने लगा। 11 तब परमेश्वर ने उससे कहा, "मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ। तेरी अनगिनत संतान होगी। तुम्हारे वंशजों से अनेक राष्ट्र बनेगे और तुम्हारे वंशजों में से राजा निकलेंगे। 12 जिस देश को मैंने अब्राहम और इसहाक को देने का वादा किया था अब वो मैं तुझे दूँगा। मैं इसे तेरे वंशजों को भी दूँगा।"

13 जब परमेश्वर ने याकूब के साथ वार्तालाप समाप्त की और वहाँ से चले गये। 14 याकूब ने उस स्थान में जहाँ परमेश्वर ने उससे बातें की थी, एक बड़ा पत्थर खड़ा किया और उस पर दाखमधू और तेल चढ़ा कर परमेश्वर के लिए उसका अभिषेक किया। 15 याकूब ने उस स्थान का नाम बेतेल रखा अर्थात "परमेश्वर का घर" क्योंकि परमेश्वर ने उससे वहाँ बातें की थीं।

16 याकूब और उसका समुदाय बेतेल से निकल के दक्षिण में एप्राता की ओर बढ़ा। अभी एप्राता थोड़ी ही दूर था कि राहेल को प्रसव पीड़ा उठी। 17 जब उसकी पीड़ा बहुत बढ़ गई तब धाय ने उससे कहा, "मत डर क्योंकि तू ने एक और पुत्र को जन्म दिया है।" 18 लेकिन वह जीवित न रह पाई और अंतिम सांस लेते समय उसने उस पुत्र का नाम बेनोनी रखा अर्थात "मेरे दुख का पुत्र" परन्तु उसके पिता ने उसका नाम बिन्यामीन रखा अर्थात "पुत्र जो मेरा दाहिना हाथ है।"

19 राहेल की मृत्यु के बाद, और उसे एप्राता के मार्ग के किनारे दफन किया गया। एप्राता का नाम बाद में बैतलहम हुआ। 20 याकूब ने उसकी कब्र पर एक बड़ा पत्थर रख दिया जो आज भी वहाँ है और वहाँ राहेल की कब्र। यह दर्शाता है।

21 याकूब जिसका नाम अब इस्राएल था परिवार के साथ यात्रा करते हुए आगे बढ़ गया और एदेर नामक मीनार के दक्षिण में अपने तम्बू खड़े किए। 22 उस स्थान में निवास करते समय रूबेन अपने पिता की एक रखैल बिल्हा के साथ सो गया। किसी ने याकूब को यह बात बता दी तो याकूब अत्यधिक क्रोधित हुआ।

अब याकूब के बारह पुत्र थे।।

23 लिआ से उसके छः पुत्र थे: रूबेन (सबसे बड़ा), शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, जबूलून। 24 राहेल के पुत्र यूसुफ और बिन्यामीन थे। 25 राहेल की दासी बिल्हा के पुत्र दान और नप्ताली थे। 26 लिआ की दासी जिल्पा के पुत्र गाद और आशेर थे। बिन्यामीन को छोड़कर याकूब के सभी पुत्रों के जन्म के समय वे पद्दनराम में रह रहे थे।

27 याकूब अपने पिता इसहाक से भेंट करने के लिए मेम्रे गया जिसका नाम किर्यतअर्बा था जिसे अब हेब्रोन कहते हैं। इसहाक का पिता अब्राहम भी वहाँ रह चुका था। 28 इसहाक 180 वर्ष तक जीवित रहा। 29 जब वह मरा, वह बहुत बूढ़ा था। वह मर कर अपने पूर्वजों में शामिल हो गया जो पहले मर गए थे। उसके पुत्र एसाव और याकूब ने इसहाक के शरीर को दफनाया।