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1 कनान में अकाल और भी अधिक भयंकर हो गया। 2 आखिरकार, जब याकूब के परिवार में अन्न समाप्त हो गया तब याकूब ने अपने पुत्रों से कहा, "मिस्र जाकर हमारे लिए और अन्न ले आओ।" 3 लेकिन यहूदा ने उससे कहा, "जिसने हमें अन्न बेचा था, उसने कठोर चेतावनी दी थी, 'यदि तुम आओ और तुम्हारा छोटा भाई तुम्हारे साथ नहीं होगा तो मैं तुम सब से नही मिलूँगा।' 4 अतः यदि तू हमारे छोटे भाई को हमारे साथ भेजे तो हम मिस्र से अपने लिए अनाज खरीद सकेंगे। 5 परन्तु यदि तू उसे नहीं भेजेगा तो हम वहाँ नहीं जाएँगे क्योंकि उस व्यक्ति ने हमसे कहा है, 'यदि तुम्हारा छोटा भाई साथ न हो तो मेरे सामने मत आना।' " 6 याकूब ने उनसे कहा, " तुम ने मेरे लिए यह संकट क्यों उत्पन्न किया कि उसे बता दिया कि तुम्हारा एक छोटा भाई भी है?" 7 उनमें से एक ने उत्तर दिया, "उसने हमारे और हमारे परिवार के विषय में पूरी पूछताछ की थी। उसने पूछा था, 'क्या तुम्हारा पिता जीवित है? क्या तुम्हारे और भी भाई हैं? हमें तो उसके प्रश्नों के उत्तर देने ही थे। हमें क्या मालूम था कि वह कहेगा, "अगली बार जब तुम आओगे तो तुम्हारे साथ तुम्हारा भाई भी हो।'"

8 तब यहूदा ने अपने पिता से कहा, "उसको हमारे साथ भेज दे कि हम जायें और अन्न ले आयें कि हम और तू और हमारी सन्तान भूख से मर न जाये। 9 मैं विश्वास दिलाता हूँ कि वह सुरक्षित रहेगा। मैं इसका उत्तरदायित्व लेता हूँ। यदि मैं उसे तेरे पास लौटाकर न लाऊँ तो तू सदा के लिए मुझे दोषी ठहरा सकता है। 10 यदि हमने इतना समय बर्बाद नहीं किया होता, तो हम अब तक वहाँ दो बार जाकर लौट आते।"

11 तब उनके पिता याकूब ने उन से कहा, "यदि कोई दूसरा रास्ता नहीं है, तो ऐसा ही करो: इस देश में उपजने वाले कुछ श्रेष्ठ सामानों को अपने बोरे में रखो, और उसे उपहार के रूप में उस व्यक्ति को दो। कुछ बालसान, मधु, सुगन्ध द्रव्य, गन्धरस, पिस्ते और बादाम आदि भी रखो। 12 इस समय, पहले से दुगुना धन भी ले लो क्योंकि पिछली बार देने के बाद पैसे लौटा दिये गये थे। तुम्हें उनको पिछली बार रखी गई चाँदी भी वापस करनी है जो तुम्हारे बोरो में रख दी गयी थी। संभव है कि गलती से तुम्हारे बोरो में रखी गई हो। 13 अपने सबसे छोटे भाई को ले लो और उस व्यक्ति के पास वापस जाओ। 14 मैं प्रार्थना करूँगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर उस पुरुष के मन में तुम्हारे लिए दया डाल दे कि वह तुम्हारे उस भाई को और बिन्यामीन को तुम्हारे साथ लौटकर आने दे और यदि मेरे पुत्र मुझसे छीन लिए गए तो मैं निर्वंश हो जाऊँगा।"

15 याकूब ने जो कहा था उसके अनुसार उन्होंने उपहार लिए और अन्न के मूल्य से दो गुणा अधिक राशि लेकर, बिन्यामीन को भी साथ लेकर वे शीघ्रता से मिस्र गए। वहाँ पहुँच कर वे यूसुफ के सामने उपस्थित हुए। 16 जब यूसुफ ने बिन्यामीन को देखा तो अपने घर के प्रबन्धक से कहा, "इन लोगों को मेरे घर ले जा और एक पशु को मार और भोजन तैयार कर क्योंकि मैं चाहता हूँ कि वे दिन का भोजन मेरे साथ करें।" और उसने उसे समझाया कि उन्हें भोजन के लिए किस क्रम में बैठाया जाएगा।

17 उस सेवक ने जैसा यूसुफ ने कहा था वैसा ही किया। वह उन्हें यूसुफ के घर में ले गया। 18 लेकिन वे डर गए क्योंकि वह उन्हें यूसुफ के घर के अन्दर ले जा रहा था। वे सोच रहे थे, "वह हमें उस चाँदी के कारण वहाँ ले जा रहा है जो पिछली बार हमारे बोरों में थी। जब हम भोजन करने बैठेंगे तब वह हम पर अपने दासों से आक्रमण कराएगा और हमें पकडकर दास बनने के लिए विवश करेगा और हमारे गधे भी छीन लेगा।"

19 वे यूसुफ के घर के प्रबन्धक के साथ यूसुफ के घर गए। जब वे घर के प्रवेश द्वार पर पहुँचे, 20 उन भाइयों में से एक ने उससे कहा, " महोदय, कृपया मेरी बात सुन। हम पहले यहाँ आए थे और हमने कुछ अनाज खरीदा था। 21 हम घर लौटने की यात्रा करते समय रात में जब रुके और हमने अपने बोरे खोले, तब हम यह देखकर आश्चर्यचकित हुए कि हम सभी के बोरे में उतने ही चाँदी के सिक्के थे जो हमने अनाज की कीमत के रूप में दिया था। अब हम वह कीमत भी वापस अपने साथ लाये हैं। 22 इस बार हम अन्न खरीदने के लिए और अधिक चाँदी लाये हैं। हम नहीं जानते कि हमारे बोरे में चाँदी किसने रखी।"

23 यूसुफ के सेवक ने उत्तर दिया, "डरो नहीं, मुझ पर विश्वास करो। जो चाँदी तुम ले आए हो वह मुझे प्राप्त हो गयी तुम्हारा पिता जिन परमेश्वर की आराधना करता था उन्हीं परमेश्वर ने तुम लोगों के धन को तुम्हारी बोरियों में भेंट के रूप में रखा होगा।" और वह शिमोन को कारावास से निकाल कर उनके पास ले आया।

24 वह उन्हें यूसुफ के घर में ले गया और उन्हें पांव धोने के लिए जल दिया तथा उनके गदहों के लिए भी चारा दिया। 25 उसने उनसे कहा कि वे दोपहर में यूसुफ के साथ भोजन करेंगे। उन लोगों ने यूसुफ के लिए उपहार तैयार किये ताकि जब यूसुफ आए तो उसे दें।

26 जब यूसुफ घर आया तब उन्होंने उसे वह उपहार दिए और उसके सामने धरती पर झुककर प्रणाम किया। 27 यूसुफ ने उनकी कुशलता पूछी और पिता के विषय में भी जानकारी प्राप्त की क्या तुम्हारा बुढा पिता स्वस्थ है जिसके विषय में तुम ने पहले बताया था, क्या वह अब तक जीवित है?" 28 उनमें से एक ने कहा, "हाँ तेरा दास, हमारा पिता जीवित है और वह भला चंगा है। पुनः यूसुफ के सामने झुककर उन्होंने प्रणाम किया।

29 तब उसने बिन्यामीन को जो उसकी माता का दूसरा पुत्र था, देखा और उनसे पूछा, "क्या यही तुम्हारा वह छोटा भाई है जिसके विषय में तुम ने मुझसे कहा था?" उन्होंने कहा, "हाँ"। तब उसने बिन्यामीन से कहा, "हे बिन्यामीन, मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वे तुझ पर दया करें।" 30 यूसुफ शीघ्र ही कमरे से निकल गया। उसे लगा कि वह रोने ही वाला है। वह अपने छोटे भाई के प्रति भावुक हो गया था। वह अपने निजी कमरे में गया और वहाँ रोया। 31 इसके पश्चात उसने अपने आँसू पोंछ लिए और अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण करके बाहर आया और अपने सेवक से कहा, "भोजन परोस।"

32 उन दिनों मिस्र वासियों के लिए इब्रानियों के साथ भोजन करना अपमानजनक था इसलिए सेवकों ने यूसुफ के लिए अलग भोजन परोसा और साथ बैठने वाले मिस्रियों के लिए अलग तथा यूसुफ के भाइयों के लिए अलग-अलग भोजन परोसा। 33 उनके भाई यह देखकर आश्चर्यचकित हुए कि उनके बैठने के स्थान उनकी आयु के क्रम अनुसार रखे गए थे, सबसे छोटे से लेकर सबसे बड़े तक। 34 उनके हिस्से का भोजन यूसुफ की मेज से लेकर परोसा गया, और बिन्यामीन को अन्य भाइयों से पाँच गुणा अधिक भोजन दिया गया। इस प्रकार उन्होंने यूसुफ के साथ भोजन किया और दाखमधु पिया और वे आनन्द से भर गए।