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1 इस बीच इश्माएलवंशी यूसुफ को लेकर मिस्र पहुँचे। वहाँ पोतीपर ने यूसुफ को उनसे खरीद लिया। पोतीपर एक मिस्री था जो राजा का अधिकारी था। वह राजा के महल के सुरक्षाकर्मियों का प्रधान था। 2 यहोवा यूसुफ के साथ थे इसलिए वह अपना काम बहुत अच्छी तरह कर सका। वह अपने मिस्री स्वामी के घर में सेवा कार्य करता था। 3 उसके स्वामी ने देखा कि यहोवा यूसुफ की सहायता कर रहे थे जो कुछ यूसुफ करता है, उसमें उसे सफल बनाने में सहायक थे। 4 यूसुफ का स्वामी उससे प्रसन्न था, अतः उसके स्वामी ने उसे अपने निजी सेवक के रूप में नियुक्त किया। इसके पश्चात उसके स्वामी ने उसे अपने परिवार और संपूर्ण संपदा की देखभाल करने के लिए नियुक्त किया। 5 जब से पोतीपर (स्वामी) ने यूसुफ को अपने घर का अधिकारी बनाया तब से यहोवा ने यूसुफ के कारण पोतीपर के घर में रहने वाले सब को समृद्धि प्रदान करना आरंभ कर दिया। यहोवा ने पोतीपर की फसल को भी बढ़ा दिया। 6 पोतीपर ने यूसुफ पर जो कुछ पोतीपर का था सबका पूरा प्रबंध सौप दिया अपने घर का पूरा प्रबंध छोड़ दिया। वह केवल अपने भोजन की चिन्ता करता था। उसे अपने घर में और किसी बात की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी।

यूसुफ अब सुगठित शरीर वाला और आकर्षक हो गया था।

7 इसके कारण, उसके स्वामी की पत्नी उसको प्रेम भरी नजर से देखने लगी। एक दिन उसने यूसुफ से कहा, "मेरे साथ सो!" 8 लेकिन उसने अपने स्वामी की पत्नी से कहा, "सुन! मेरा स्वामी इस घर की किसी बात की चिन्ता नहीं करता है। उसने अपनी सम्पूर्ण सम्पति की देख-रेख के लिए मुझे नियुक्त किया है। 9 इस घर में मुझसे अधिक अधिकार और किसी के पास नहीं है। जिस एकमात्र पर उसने मुझे अधिकार नहीं दिया है वह तू है क्योंकि तू उसकी पत्नी है! मैं ऐसी दुष्टता कैसे कर सकता हूँ जिसके लिए तू मुझसे कह रही है? यदि मैंने ऐसा किया तो मैं परमेश्वर की दृष्टि में पाप करूँगा! " 10 वह दिन-प्रतिदिन यूसुफ से उसके साथ सोने के लिए कहती रही लेकिन वह मना करता रहा। वह उसके निकट भी नहीं जाता था।

11 एक दिन जब यूसुफ घर में अपना काम करने के लिए गया तब घर में अन्य कोई सेवक नहीं था। 12 पोतीपर की पत्नी ने उसके वस्त्र को पकड़ लिया और कहा, "मेरे साथ सो!" यूसुफ घर से बाहर भाग गया, लेकिन यूसुफ का वस्त्र उसके हाथ में ही रह गया। 13 जब उसने देखा कि यूसुफ अपना वस्त्र छोड़ कर बाहर भाग गया, 14 उसने घरेलू दासों को बुलाया। उसने उनसे कहा, "देखो! यह इब्रानी दास जिसे मेरा पति यहाँ लाया था। उसने मेरा अपमान किया है। वह मेरे पास अन्दर आया जहाँ मैं थी और मुझे अपने साथ सोने के लिए विवश करने का प्रयास किया, लेकिन मैं जोर से चिल्लाई। 15 मेरा चिल्लाना सुन कर वह अपना वस्त्र छोड़ कर बाहर भाग गया।" 16 उसने यूसुफ के स्वामी के घर आने तक उसका वस्त्र अपने पास रखा। 17 तब उसे यह कहानी सुनाई, "वह इब्रानी दास जिसे तू यहाँ ले आया है, मेरे पास अन्दर आया और मेरे साथ सोने के लिए मुझे विवश करने लगा। 18 परन्तु जब मैं चिल्लाई तो अपना वस्त्र छोड़ कर बाहर भाग गया।" 19 यूसुफ के स्वामी ने अपनी पत्नी से जब यह कहानी सुनी जो वह सुना रही थी और जब उसने कहा, "तेरे दास ने मेरे साथ कैसा व्यवहार किया है।" वह बहुत क्रोधित हुआ। 20 यूसुफ के स्वामी ने यूसुफ को ले जा कर कारावास में डाल दिया। उस कारावास में राजा के सभी कैदियों को रखा गया था, यूसुफ भी वहीं रहा।

21 परन्तु यहोवा यूसुफ के प्रति दयालु रहे। पूर्वजों के साथ अपने वचन के कारण उसकी सहायता करते रहे। यहोवा ने ऐसा किया कि कारावास के प्रबंधक यूसुफ से प्रसन्न हो गया। 22 तब कारावास के प्रबंधक ने यूसुफ को कारावास के कैदियों का और अन्य सब कामों का प्रभारी बना दिया। 23 कारावास के प्रबंधक को किसी बात की चिन्ता नहीं करनी थी क्योंकि यूसुफ काम संभाल रहा था। यहोवा ने यूसुफ को अपने सब काम अच्छी तरह से करने में सहायता की।